Navratri 2024 : शारदीय नवरात्रि 2024 का मुहूर्त ,पूजन विधि और महत्व
Navratri 2024 : शारदीय नवरात्रि 2024 का शुभारंभ 3 अक्टूबर 2024 (गुरुवार) से होगा और इसका समापन 12 अक्टूबर 2024 (शनिवार) को होगा। यह नौ दिवसीय पर्व माँ दुर्गा के नौ रूपों की आराधना के लिए जाना जाता है। हर दिन माँ दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है, और श्रद्धालु पूरे भक्ति भाव से व्रत रखते हैं।
Navratri 2024 : शारदीय नवरात्रि 2024 का मुहूर्त ,पूजन विधि और महत्व
Navratri 2024 : शारदीय नवरात्रि 2024 के प्रमुख मुहूर्त
- कलश स्थापना (घटस्थापना) का मुहूर्त:
- तारीख: 3 अक्टूबर 2024 (गुरुवार)
- समय: प्रातः 6:10 AM से 7:40 AM (अभिजीत मुहूर्त) और दोपहर 11:36 AM से 12:24 PM तक।
- कलश स्थापना का उत्तम समय: प्रतिपदा के दिन सूर्योदय के समय होता है।
- दुर्गाष्टमी:
- तारीख: 10 अक्टूबर 2024 (गुरुवार)
- महानवमी:
- तारीख: 11 अक्टूबर 2024 (शुक्रवार)
- विजयादशमी (दशहरा):
- तारीख: 12 अक्टूबर 2024 (शनिवार)
Navratri 2024 : नवरात्रि पूजन विधि:
- कलश स्थापना (घटस्थापना):
- पहले दिन घटस्थापना की जाती है। इसके लिए एक मिट्टी के बर्तन में जौ बोए जाते हैं, उस पर जल से भरा हुआ कलश रखा जाता है। इस कलश पर आम के पत्ते और नारियल रखकर माता की मूर्ति के सामने स्थापित किया जाता है।
- माँ दुर्गा की प्रतिमा या चित्र:
- माँ दुर्गा की प्रतिमा या चित्र को अच्छे से सजाएं और उसके सामने दीप जलाएं। प्रतिदिन सुबह और शाम माता की आरती और पूजा करें।
- नौ देवियों की पूजा:
- नवरात्रि के दौरान माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है:
- शैलपुत्री
- ब्रह्मचारिणी
- चंद्रघंटा
- कूष्मांडा
- स्कंदमाता
- कात्यायनी
- कालरात्रि
- महागौरी
- सिद्धिदात्री
- व्रत:
- कई श्रद्धालु पूरे नौ दिन का व्रत रखते हैं, जबकि कुछ पहले और आखिरी दिन उपवास रखते हैं। व्रत के दौरान फलाहार या विशेष सात्विक भोजन किया जाता है।
- संध्या आरती:
- हर दिन संध्या समय में दुर्गा माता की आरती की जाती है, और “जय अम्बे गौरी” या “अद्भुत रामायण” का पाठ किया जाता है।
- कन्या पूजन:
- अष्टमी या नवमी के दिन नौ कन्याओं का पूजन किया जाता है। इन्हें देवी का रूप माना जाता है। उन्हें भोजन कराकर उनका आशीर्वाद लिया जाता है।
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Navratri 2024 : नवरात्रि का महत्व:
शारदीय नवरात्रि, शरद ऋतु में आने वाला एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो माँ दुर्गा की शक्ति और उनके नौ रूपों की आराधना के लिए समर्पित है। इसे बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है और अंत में दशहरे के रूप में रावण पर भगवान राम की विजय का उत्सव मनाया जाता है।